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- बार बार पूछे जानेवाले सवाल
प्र. चेरनोबिल पर तथ्य ?
प्र. क्या भारत के न्यूक्लियर पावर प्लांट में चर्नोबाइल जैसी दुर्घटना हो सकती है ?
न्यूक्लियर पावर के पास तीन दशक से ज्यादा की अवधि का अच्छा खासा सुरक्षा रेकॉर्ड है। मार्च 1979 में दि थ्री माइल आयलैंड दुर्घटना और अप्रैल 1986 में चर्नोबाइल दुर्घटना से विश्वभर में जनता के मन में डर बैठ गया है। टीएमआई के मामले में किसी भी जनता को कोई भी रेडिएशन चोट नहीं पहुंची। असल में, सभी सुरक्षा प्रणाली ने अपनी डिजाइन के अनुसार कार्य किया और वातावरण में रेडियोएक्टिविटि रिलिज नहीं हुई थी। चर्नोबाइल में 31 लोगों की मृत्यु हुई थी और वे सभी प्लांट कार्मिक थे। फिर भी, यह मान लेना चाहिए कि यह दुर्घटना सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करनेवाले प्लांट ऑपरेटरों की लापरवाही के कारण हुई। और चर्नोबाइल रिएक्टर एक अलग ही तरह का रिएक्टर है। इसमें मॉडरेटर के रूप में ग्राफाइट का प्रयोग किया गया था। ग्राफाइट कार्बन का ही एक प्रकार है और रिएक्टर के मुख्य भाग में इसके कंबस्टिबल गुण ने विस्फोट में साथ दिया। न्यूक्लियर संयंत्र में इस प्रकार की घटनाओं का क्रम संभव नहीं है और रिएक्टर के मुख्य भाग में विस्फोट का तो सवाल ही नहीं उठता क्योंकि यह ठंडा होता है और इसे हेवी वाटर द्वारा नियंत्रित रखा जाता है। सुरक्षित प्रचालन को सुनिश्चित करने के लिए संयंत्र में पर्याप्त सुरक्षा विशेषताएं दी गयी है। न्यूक्लियर पावर संस्थापन के समय प्रचालन करनेवाले कार्मिक, जनता और पर्यावरण की सुरक्षा को सर्वोच्च महत्व दिया जाता है। न्यूक्लियर पावर प्लांट के प्रचालन और कमीशनिंग के समय सुरक्षा विशेषज्ञ और नियामक कार्मिक हमेशा संबद्ध रहते हैं। अत: भारतीय न्यूक्लियर पावर प्लांट में चर्नोबाइल प्रकार की दुर्घटनाएं नामुमकीन है।
प्र. भारत के उपलब्ध ऊर्जा स्रोत क्या है ?
निम्न तालिका में भारत के उपलब्ध ऊर्जा स्रोत दिखाए गए है : निश्चित आरक्षित ऊर्जा |
कोयला |
186 |
बिलियन टन |
लिग्नाइट |
5,060 |
मिलियन टन |
कच्चा तेल |
728 |
मिलियन टन |
प्राकृतिक गैस |
686 |
बिलियन सीयु-एम |
युरानियम |
78,000 |
टन |
थोरियम |
3,63,000 |
टन |
हायड्रो |
84,000 |
60% पीएलएफ पर मेगावाट |
नवीकरणीय |
बायोमास |
6000 |
मेगावाट |
वायु, सौर इत्यादी |
20,000 |
मेगावाट |
प्र. भारत का त्रि - चरणीय नाभिकीय कार्यक्रम क्या है ?
देश में मर्यादित जीवावशेष र्इंधन (fossil fuel) की उपलब्धता को मद्देनज़र रखते हुए प्रारंभिक स्तर पर ही अल्प एवं दीर्घकालीन आवश्यकता को पूरा करने के लिए नाभिकीय ऊर्जा की संबद्धता को पहचान लिया गया था। शुरूआत से ही, दीर्घकालीन रणनीति के रूप में डॉ. होमी भाभा द्वारा बनाये गये नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम में तीन स्तर का नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम सम्मिलित था जिसमें युरोनियम के हमारे मर्यादित रिज़र्व और बृहत थोरियम रिज़र्व का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से किये जा सकने के लिए प्रेशराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर (पीएचडब्ल्युआर) और फास्ट ब्रिडर रिएक्टर (एफबीआर) की र्इंधन चक्र को जोडना शामिल था। इस कार्यक्रम के जरिए दीर्घकालीन लक्ष्य के रूप में थोरियम का उपयोग और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया गया। तकनीकी समावेश को समर्थन देने के लिए, विविध क्षेत्रों को शामिल करने वाली बृहत शोध एवं विकास सुविधाओं के कारण पीएचडब्ल्युआर का चयन किया गया था।
अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के तीन चरण निम्नानुसार है :
- चरण-I : प्राकृतिक युरानियम, हेवी वटर मॉडरेटेट एवं कुल्ड प्रेशराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर्स (पीएचडब्ल्युआर) के निर्माण पर विचार करना। इन रिएक्टरों से उपयोग किये गये र्इंधन को प्लूटोनियम प्राप्त करने के लिए फिर से प्रोसेस किया जाता है।
- चरण-II : चरण-I में तैयार किये गये प्लूटोनियम द्वारा प-युल ब्रिडर जाने के बाद फास्ट ब्रिडर रिएक्टर (एफबीआर) के निर्माण पर विचार करना। ये रिएक्टर्स थोरियम से प्राप्त यु - 233 का भी उत्पादन करेगे।
- चरण-III : र्इंधन के रूप में यू - 233/ थोरियम का उपयोग करके पावर रिएक्टर को सम्मिलित करेंगे।
दृश्य 3 - चरण नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम प्रदर्शन
प्र. न्यूकिलयर प्लांट के आस पास के पर्यावरण की निगरानी किस प्रकार से की जाती है ?
संयंत्र का प्रचालन शुरू होने से बहुत पहले से ही यह पर्यावरणीय सर्वेक्षण प्रयोगशाला (ईएसएल) द्वारा किया जाता है। संयंत्र के प्रचालन से पूर्व उनकी गुणता के संबंध में आधार स्तर के डेटा को बनाने के लिए ईएसएल वन, फूल और पौधों, समुद्रीय उत्पादन, खाना और हवा इत्यादि से आंकडा इकटठे करता है। स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए निरंतर रूप से नमूने लिये जाते है और इनका विश्लेषण नियमित तौर पर किया जाता है। ईएसएल अपना कार्य संयंत्र प्राधिकारियों की मदद लिये बिना करता है और नियंत्रण में रखने के उददेश्यों से इकटठा किये गये डेटा की जांच नियामक अधिकारियों द्वारा की जाती है।
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